गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
देहरादून, 05 जुलाई। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। गुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार होता है गुरू की कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुपूजन का विधान है। शिष्य अपने गुरु की प्रत्यक्ष या उनके चरण पादुका की चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा पूजा करते हैं। इस दिन अपने गुरु द्वारा प्रदत मंत्र का जप करने का विधान है।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। हिंदू सनातन शास्त्र के अनुसार, इस तिथि पर परमेश्वर शिव ने दक्षिणामूर्ति का रूप धारण किया और ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों को वेदों का अंतिम ज्ञान प्रदान किया।
हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा को बेहद पवित्र और आध्यात्मिक महत्व का दिन माना जाता है। हर साल यह पर्व आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यही दिन व्यास पूर्णिमा और वेदव्यास जयंती के रूप में भी श्रद्धा से मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उन्होंने न केवल महाभारत, बल्कि श्रीमद्भागवत, अट्ठारह पुराण और ब्रह्म सूत्र जैसे ग्रंथों की रचना करके सनातन धर्म को अमूल्य धरोहर दी। गुरु पूर्णिमा को गुरु-शिष्य परंपरा का उत्सव माना जाता है। इस दिन लोग अपने आध्यात्मिक, सामाजिक या शैक्षिक गुरु का सम्मान करते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं और उनके मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता प्रकट करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना, दान-पुण्य करना और गुरु का पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उस ज्ञान की आराधना है जो जीवन के अंधकार को मिटाकर हमें सही राह दिखाता है। आइए जानते हैं गुरु पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व। गुरु पूर्णिमा वह विशेष दिन है जब हम अपने जीवन के गुरुओं को सम्मानपूर्वक नमन करते हैं। ये गुरु हमारे शिक्षक हो सकते हैं, माता-पिता, आध्यात्मिक मार्गदर्शक या कोई भी ऐसा व्यक्ति, जिसने हमें जीवन का सही रास्ता दिखाया हो। इस पर्व का धार्मिक और भावनात्मक महत्व बेहद गहरा है। मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों, पुराणों और महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना करके सनातन धर्म को एक गहरी बौद्धिक नींव दी। इसलिए इस दिन को वेदव्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के अगले ही दिन से सावन मास का शुभारंभ होता है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में शिवभक्ति और व्रतों के लिए पवित्र माना जाता है। इस अवसर पर भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और वेदव्यास जी की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन लोग अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेते हैं, उन्हें उपहार अर्पित करते हैं, और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा केवल परंपरा नहीं, बल्कि उस सच्चे ज्ञान और मार्गदर्शन की पूजा है, जो जीवन को सार्थक बनाता है।
गुरु पूर्णिमा तिथि 2025
आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि आरम्भ: 10 जुलाई, रात्रि 01 बजकर 37 मिनट पर
आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जुलाई, रात्रि 02 बजकर 07 मिनट पर
इस प्रकार से 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा 2025 शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 4:10 से 4:50 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11:59 से दोपहर 12:54 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 12:45 से 3:40 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: सायं 7:21 से 7:41 बजे तक