भगवती प्रसाद गोयल /एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
हरिद्वार। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि भक्त का अपने इष्ट के प्रति अनुराग श्रद्धा, विश्वास एवं साधना से बढ़ता है। कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में आयोजित नवरात्र साधना सत्संग शृंखला के आठवें दिन युवा साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नौका रूपी साधना में एक भी छिद्र यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार नहीं होना चाहिए, तभी साधना का मनोवांछित फल मिलता है। मनोयोगपूर्वक की गयी साधना से पवित्रता, शांति, शक्ति जैसे सद्गुणों का विकास होता है। उन्होंने कहा कि नवरात्र के दिनों में गायत्री मंत्र की साधना करने से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मन के दुःख, द्वेष, पाप, भय, शोक जैसे नकारात्मक चीजों का अंत होता है। इस मंत्र के जप से मनुष्य मानसिक तौर पर जागृत हो जाता है। मानस मर्मज्ञ डॉ पण्ड्या ने रामचरित मानस में शिव पार्वती संवाद का उल्लेख करते हुए गायत्री महामंत्र का नियमित रूप से जप, साधना करने के लिए साधकों को प्रेरित किया। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या ने कहा कि इस बार यही प्रयास होना चाहिए कि अपने जीवन में देवत्व जगाने हेतु उन तथ्यों व वचनों की गहराई में जाय, जो भगवान महादेव ने कहे हैं। उन्होंने कहा कि श्रीरामचरित मानस में शिव पार्वती संवाद को गहराई से जानने का प्रयास किया जाना चाहिए, जिससे महाकाल शिव के वचनों के महत्त्व को समझा जा सके। समापन से पूर्व युगगायकों ने मातृ वंदना- माँ तेरे चरणों में हम शीश झुकाते हैं…… गाकर उपस्थित साधकों को भक्तिभाव से झंकृत कर दिया। इस अवसर पर रामचरित मानस की महाआरती में साधकों ने प्रतिभाग किया। इस दौरान देश-विदेश से आये साधकों सहित शांतिकुंज परिवार एवं देवसंस्कृति विवि के समस्त विभागाध्यक्ष, शिक्षक, शिक्षिकाएँ व छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।