वीर सावरकर की जयन्ती के अवसर पर हुआ शरबत का वितरण

संदीप गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून, 28 मई। आज विनायक दामोदर वीर सावरकर की 140वी जयन्ती के अवसर पर वीर सावरकर संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा वीर सावरकर चौक (शिमला बाईपास) पर प्रातः 11ः30 बजे से शरबत वितरण प्रारम्भ किया गया। संगठन के सभी कार्यकर्ताओं ने वीर सावरकर को स्मरण किया। इस अवसर पर वक्ताओं ने सावरकर जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वीर सावरकर दुनिया के पहले ऐसे क्रान्तिकारी थे, जिनको ब्रिटिश हुकुमत के द्वारा दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई, वीर सावरकर को ही वकालत की पढाई करने के बाद वकालत की डिग्री नहीं दी गई क्योंकि वीर सावरकर ने ब्रिटिश हुकुमत कि शर्तो को मानने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उनकी शर्ते भारत के खिलाफ एवम् ब्रिटिश हुकुमत के पक्ष में थी। साथ ही जब वीर सावरकर अंडमान की कालकोठरी में यातनाएं झेल रहे थे, ऐसी घोर यातनाओं में भी वीर सावरकर को देश की स्वतंत्रता की चिंता लगी रहती थी। वीर सावरकर जिस कालकोठरी में रहते थे उस कालकोठरी को ही उन्होने अपनी पुस्तक बना डाला। उसकी दीवारों पर नाखुनों और कंकडो की सहायता से दस हजार से भी अधिक पंक्तियाँ लिख डाली, जिनको उन्होने याद करके जेल से बाहर आते ही उन पक्तियों को पुस्तक का रूप दे दिया। ऐसे महान् क्रान्तिकारीयों के मार्ग पर चलकर इस देश और समाज को अपने क्रान्तिकारियो के स्वप्नों का भारत निर्माण करना चाहिए। कार्यक्रम में मुख्य रूप से कुलदीप स्वेडीया संस्थापक अध्यक्ष, अतूल धीमान संगठन महामंत्री, धनीराम सक्सेना संगठन मंत्री, संजीव गोयल कोषाध्यक्ष, सर्वेश त्रिपाठी, प्रतिक गर्ग, संरक्षक, मुकेश बिष्ट, राकेश कुमार, इन्द्रजीत यादव, विक्रम, मेनपाल, सुरज, सुमीत रोहिला, मेनपाल, हर्ष स्वेडिया आदि कार्यकर्ता उपस्तिथ रहे।

 

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