परमार्थ निकेतन में श्रीमद् भागवत कथा का शुभारम्भ

ऋषिकेश । परमार्थ निकेतन से पद्मश्री कैलाश खेर ने विदा ली। परमार्थ निकेतन में स्पेन से आये श्रद्धालुओं ने श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया। परमार्थ निकेतन से चलते-चलते कैलाश खेर ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के सान्निध्य में कथा यजमान परिवार और जाम्बिया से आये सेवाभावी पटेल परिवार को रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हुये कहा कि यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि अब पश्चिम की धरती से भी श्रीमद् भागवत कथा के आयोजन एवं श्रवण हेतु श्रद्धालु परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश भारत आ रहे हैं।

पहले तो पश्चिम की धरती से पर्यटक, भारत, पर्यटन, योग व ध्यान के लिये आते थें परन्तु अब श्रीरामकथा, श्रीमद् भागवत कथा और अन्य धार्मिक आयोजनों के लिये आते हैं। पश्चिम से आकर लोग होटल में रूकने के बजाये आश्रम के सात्विक व आध्यात्मिक वातावरण में रहकर तीर्थ सेवन करते हैं। आश्रम की दिनचर्या प्रातःकाल गंगा जी में स्नान, यज्ञ, दर्शन, योग, ध्यान, कथा श्रवण, गंगा आरती व सांयकालीन सत्संग का आनन्द लेते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कैलाश खेर जहां भी जाते है गाते भी हैं, झूमते भी है और झूमाते भी है, नाचते भी हैं और नचाते भी है। जब भी वे आते हैं पूरा वातावरण आनन्द और उल्लास से भरा जाता है। जब भी वे गाते हैं सभी के पैर थिरकने लगते हैं। लोग डीजे की धून पर थिरकते हैं परन्तु डीजे की धून पर थिरकने वाली पीढ़ी को डिवाइन पीढ़ी बना देना ये हमारे देश के पद्मश्री श्री कैलाश खेर जी ही कर सकते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि जीवन में कुछ लक्ष्य होते है। जीवन में कलेक्शन नहीं बल्कि कनेक्शन जरूरी है। माॅल में जाकर माल एकत्र करते हैं, शापिंग करके (शेल्फ) अलमारियाँ भर लेते हैं परन्तु स्वयं (सेल्फ) खाली ही रह जाते हैं। हम अमीर बनें परन्तु परमात्मा को पाकर बने। धनवान वह नहीं जिसकी तिजोरी में धन भरा हो बल्कि धनवान वह है जिसकी तिजोरी धर्म से भरी हो। दिल की तिजोरी में करूणा हो, प्रेम हो, सत्य हो, अहिंसा हो वहीं धनवान है। यह संसार एक धर्मशाला है। इस धर्मशाला में आकर अपने धर्म को प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य हो।

कैलाश खेर ने कहा कि प्रेम की कोई हद व सरहद नहीं होती और सच्चा प्रेम हमें संतों के श्री चरणों में ही प्राप्त होता है। पूज्य संतों की छत्रछाया में सब कुछ सम्भव है। उनकी कृपा दृष्टि से आज मुझे विश्वाटन करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। जिसके माध्यम से मैं भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और संगीत की विधाओं के द्वार प्रेम का संचार कर रहा हूँ। उन्होंने कहा कि भारत एक भौगोलिक परिधि नहीं बल्कि एक विचार है; भारत एक भाव है; भारत एक जीने की शैली है। भारत की परम्परा, नदियों और वृक्षों की पूजा करना है। हम सूर्य के उपासक है; हम प्रकृति के उपासक है। आश्रमों और पूज्य संतों की शरण में ही शान्ति प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि जब तक हमारी सांसों होंगी तब तक अध्यात्म की गंगा बहाते रहेगे।

इस अवसर पर श्री कैलाश खेर ने जाम्बिया से आया एक ऐसा पटेल परिवार जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी संस्कृति के लिये समर्पित किया है। जाम्बिया की धरती पर भारत से जो भी संत-महात्मा जाते हैं उनकी सेवा करने वाले श्री रमेश पटेल, बल्लु पटेल, मंजू पटेल, डा कृपाली पटेल और पूरे पटेल परिवार को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर सम्मानित किया।

स्पेन निवासी यजमान श्री हरेश और लाजु बाबानी द्वारा दिव्य कथा का आयोजन, स्पेन से आये गीता पुर्सनानी जी, विशाल बाबानी जी, प्रीति बाबानी जी, दुबई से हरेश भारवानी जी हांगकांग हरेश पिरमलानी जी, यूके और अफ्रीका वरखा जगतानी जी और हरेश जगतानी जी और अमेरिका, इंग्लैंड, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका आदि अनेक देशों से कथा श्रवण करने आये श्रद्धालुओं को भी स्वामी जी और कैलाश खेर ने रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर सम्मानित करते हुये कहा कि आप सभी पश्चिम की धरती पर भारतीय संस्कृति को जीवंत और जागृत रखने हेतु अद्भुत कार्य कर रहे हैं। श्रीमद्भागवत कथा कथाव्यास मोहित के द्वारा हो रही हैं।

 

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