डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि हिंदू परंपरा में शरद पूर्णिमा का बहुत महत्व है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और चांद की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी धरती लोक पर आती हैं और अपने भक्तों का भंडार भरती हैं। शरद पूर्णिमा का त्योहार हर जगह पर अलग- अलग रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन चांद की रोशनी में खीर का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि उस खीर का भोग लगाने से खीर में साकारात्मक ऊर्जा आती है। हर साल शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। साल 2024 में शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 बुधवार के दिन मनाई जाएगी।शरद पूर्णिमा 2024 में 16 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन शरद पूर्णिमा तिथि सुबह 8 बजे से शुरू होगी और इसका समापन 17 अक्टूबर की शाम 5 बजे होगा। इस दिन शाम के समय में पूजा करना शुभ होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा को शीत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि बहुत सुन्दर होती है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को अमृत बरसता है, यही वजह है कि लोग रात को आसमान के नीचे बर्तन में खीर रखते हैं और अगली सुबह स्नान के बाद इसे खाते हैं। यह भी माना जाता है कि इस वस्तु को चांदी के पात्र में रखना चाहिए। इस दिन खीर खाने से साकारात्मक ऊर्जा आती है। शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी की पूजा करने से धन की वर्षा होती है।

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