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दिलों को छू लेने वाला बना नन्हीं बच्ची का सांस्कृतिक गायन

एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून। विरासत साधना व  सांस्कृतिक संध्या में आज का दिन भी श्रोताओं, दर्शकों के लिए बहुत खूब एवं आकर्षित करने वाला रहाI आज की सुबह स्कूली बच्चों द्वारा की गई प्रस्तुतियों की महफिल में बच्चों ने अपना रंग जमायाI समीर तिवारी ने राग भैरव में संगीत सुरों से कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए शास्त्रीय संगीत की लय बनाकर श्रोताओं की प्रशंसा बटोरीI टचवुड स्कूल की छात्रा विधि चौधरी ने राग जानपुरी में शानदार प्रस्तुति दी I इसके साथ ही कर्नल ब्राउन स्कूल की पार्थवी चौहान, देवांश अवस्थी ने राग मालगोन की प्रस्तुति दीI यूनिवर्सल एकेडमी की नन्हीं बच्ची नंदिनी सिंह की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र बनी रहीI एशियन स्कूल की काशमी नेगी, द टॉम ब्रिंग स्कूल की किमाया सिंह ने राग नंदिनी में तराना प्रस्तुत किया I सुबह की इस सांस्कृतिक साधना में नयन तारा सिंह, सायगा जैन, आयुषमान शुक्ला, शौर्य असवाल, सानवीर तोमर व आरिम कुमार ने भी मनमोहक शास्त्रीय गीतों के सुरों संगत देकर सांस्कृतिक विरासत की महफिल में चार चांद लगाएI विरासत साधना कार्यक्रम के अंतर्गत  जीआरडी आईएमटी देहरादून में आज परिचर्चा पर व्याख्यान किया गया I आज की परिचर्चा में भाग लेते हुए डॉ.अर्शिया सेठी ने कहा कि जिंदगी का हर पल व हर दिन एक बहुत ही कीमती समय है I उन्होंने थोड़ा सा भावुक होकर कहा कि इस जिंदगी में जिंदगी से ज्यादा कुछ भी तो नहीं है I प्री चर्चा में “युवाओं के लिए कला क्यों महत्वपूर्ण है?” के विषय पर यह परिचर्चा आयोजित की गई। डॉ. अर्शिया सेठी कॉलेज के छात्रों को संबोधित करते हुए कल के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि यदि हम कल को निशुल्क करते हैं, तो लोगों के बीच उसका महत्व निश्चित रूप से कम हो जाएगा I इसीलिए यह आवश्यक है कि जिंदगी के किसी कल को वैल्यू क्रिएशन की दृष्टि व मजबूत उद्देश्य से देखना चाहिए I उन्होंने कहा कि इस जिंदगी में जिंदगी से ज्यादा खूबसूरत कुछ भी नहीं है। अगर आप अपने जीवन को एक कला के रूप में देखते हैं तो फिर आप हर उस आर्ट को सम्मान देंगे, जो लोगों द्वारा बनाया जाता है और आप तक पहुंचता है। हम अपने जीवन में जो चीज़ सीखते हैं वह सब एक कला का रूप होता है I चाहे वह डांसिंग हो, एक्टिंग हो, सिंगिंग हो या फिर खाना बनाना ही क्यों न हो? उन्होंने बड़ी संजीदगी के साथ परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि अगर मनुष्य का जीवन संतुलित है तो उसकी कला भी संपूर्ण होगी।अगर किसी कला को सीखने वाले नहीं है और सिखाने वाले भी नहीं है, तो यह आप समझ लो कि  हमारे बीच से कोई एक ऐसी कला हमेशा के लिए खत्म हो गई है जो अब हमें कभी नहीं दिखाई या सुनाई देगा। परिचर्चा में भाग लेते हुए जीआरडी आईएमटी के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉली ओबेरॉय ने विरासत की ओर से आयोजित की जा रही परिचर्चा के लिए विरासत की पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि विरासत द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम हमारे युवाओं के लिए बहुत ही प्रेरणादायक और महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विरासत ने सभी कलाओं तथा कलाकार हस्तियों को संरक्षित करने का जो बीड़ा उठाया हुआ है, वह वास्तव में बहुत ही सराहनीय एवं ऐतिहासिक कदम है I कार्यक्रम में हर आने वाली विख्यात शख्सियत युवाओं के बीच में अपने विरासत फेस्टिवल के माध्यम से कलाओं को दिखाने का काम करते हैं। जहां विभिन्न प्रकार के आर्ट एंड क्राफ्ट एग्जीबिशन के साथ-साथ गीत संगीत,नृत्य का जो प्रदर्शन होता हैं वह बहुत  ही आकर्षक व काबिले तारीफ है। इस उद्देश्य के लिए मैं विरासत टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। उन्होंने कहा कि हमें अपने देश के हर नौजवान एवं युवा पीढ़ी को यह बताना आवश्यक है कि आर्ट कल्चर, क्राफ्ट को संरक्षित करके रखा जाए, क्योंकि यह हमारी धरोहर है I साथ ही हमें विलुप्त हो रही धरोहर को भी बचना होगा I यूनिसन स्कूल ने रीच संस्था के सहयोग से प्रतिष्ठित नेवी बैंड की प्रस्तुति के साथ “मनमोहक धुन”की मेजबानी करते हुए सभी का दिल जीत लिया। स्कूल में ही आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य समुद्री इतिहास और भारतीय नौसेना की महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मनाना था I मन को मोह लेने वाले इस समारोह की शुरुआत सेवानिवृत्त कमोडोर गौतम नेगी के प्रेरक उद्घाटन भाषण से हुई,जिन्होंने दिन के उत्सव की शुरुआत की। कार्यक्रम में सब लेफ्टिनेंट श्रेया जोशी ने समुद्री इतिहास और समुद्र के महत्व के बारे में जानकारी साझा की, जिसमें राष्ट्रीय विरासत में इसके महत्वपूर्ण योगदान पर जोर दिया गया। इसी श्रृंखला में सेवानिवृत्त कमोडोर मोनिका ने भी भारतीय नौसेना के भीतर आत्मनिर्भरता के महत्व पर चर्चा करने के लिए मंच संभाला। उन्होंने नौसेना की विविध भूमिकाओं, करियर के अवसरों, जहाजों पर जीवन और शामिल होने की प्रक्रियाओं, जिसमें एसएसबी साक्षात्कार और भारतीय राष्ट्रीय अकादमी, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के माध्यम से मार्ग शामिल हैं, के बारे में विस्तार से बताया। कैप्टन कुकरेती ने दर्शकों को नौसेना बैंड से परिचित कराया तथा प्रदर्शन के लिए तैयार प्रतिभाशाली संगीतकारों का परिचय कराया। नौसेना के इस बैंड ने विविध प्रदर्शनों की सूची पेश की, जिसमें शामिल हैं जिसमें उदय दास(बांसुरी/सोप्रानो सैक्सोफोन),अमल जोस (शहनाई/गायन),रोशन थापा (शहनाई),रूपम रॉय (शहनाई),वरदान चौहान (शहनाई),विशाल (ऑल्टो सैक्सोफोन),संदीप दिगल (टेनर सैक्सोफोन),अरुण कुमार(बैसून/लीड गिटार), राहुल जोशी(फ्रेंच हॉर्न), यूकेके रेड्डी(कॉर्नेट), बी आनंदराज (कॉर्नेट), जॉन पॉल एडी (कॉर्नेट/गायन),मामूप्रीत सिंह(कॉर्नेट/कीबोर्ड), स्वप्निल छेत्री(टेनर  ट्रॉम्बोन), भूपति ई(टेनर ट्रॉम्बोन/कीबोर्ड), एंथनी राफेल (यूफोनियम/ऑक्टा पैड), श्रीजीत वीआर(बास), वी प्रणव(बास),एसबी राणा मगर(बास),प्रिंस वर्गीस (पर्क्यूशन) शामिल हैI संगीत कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक “मंगल” से हुई और इसमें नौसेना के मार्च, उत्तराखंड के लोकगीत और लोकप्रिय बॉलीवुड हिट शामिल रहे,जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया I तत्पश्चात यूनिसन स्कूल की प्रिंसिपल श्रीमती मोना खन्ना ने नौसेना अधिकारियों को गुलदस्ता भेंट किया और राष्ट्र के लिए उनकी सेवा और योगदान के लिए आभार व्यक्त करते हुए सभा को संबोधित किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। यूनिसन स्कूल में आए इस कार्यक्रम में भारतीय नौसेना की उपलब्धियां को भी बताया गया I इसका कुछ संक्षिप्त परिचय यह है कि भारतीय नौसेना बैंड की उत्पत्ति 1945 में हुई थी, जब इसे कुछ नौसेना संगीतकारों के साथ मिलकर बनाया गया था। तब से इसने एक लंबा सफर तय किया है और आज नौसेना के पास देश भर के विभिन्न बैंडों में कई प्रशिक्षित संगीतकार हैं।भारतीय नौसेना बैंड,जिसे भारतीय नौसेना सिम्फोनिक बैंड के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय नौसेना का पूर्णकालिक संगीत बैंड है। यह वर्तमान मेंआईएनएस कुंजली से जुड़ा हुआ है। इसके कमीशन के समय, इसमें 50 संगीतकार थे। सभी बैंड सदस्यों के पास मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री है और वे कम से कम एक सैन्य प्रायोजित वाद्ययंत्र को कुशलता से बजा सकते हैं। आज, बैंड अब मृदंगम, तबला और कर्नाटक वाद्ययंत्र जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग करता है। बैंड ने हाल के वर्षों में वायलिन,वायलस, सेलो और डबल बास से युक्त एक बड़े स्ट्रिंग सेक्शन को जोड़ने जैसे अतिरिक्त कार्यों को शामिल करके इसे एक पूर्ण सिम्फोनिक ऑर्केस्ट्रा बनाने के लिए संवर्द्धन भी किया है। अनोल चटर्जी ने रागेश्वरी के साथ अपने हिंदुस्तानी गायन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने एक ‘बड़ा ख्याल’ के हिस्से के रूप में एक ताल में विलम्बित रचना प्रस्तुत की। उनके साथ हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्रा,तबले पर पंडित शुभ महाराज, जबकि तानपुरा पर सिद्धांत प्रुथी और नितिन शर्मा रहे। देश विदेश में विख्यात भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया के गायक अनोल चटर्जी ने अपने आकर्षक एवं अद्भुत गायन से लोगों का दिल जीत लिया और सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया I अनोल चटर्जी एक बेहतरीन भारतीय शास्त्रीय गायक, एक संगीत प्रशिक्षक और संगीतकार हैं I इस समय अनोल चटर्जी भारतीय शास्त्रीय गायन के क्षेत्र में एक उभरता हुआ नाम है। अनोल के संगीत का स्वाद मूल रूप से पटियाला घराने की शैली है, जिसे महान उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब ने लोकप्रिय बनाया था, लेकिन अनोल ने किराना, जयपुर, आगरा बनारस आदि जैसी अन्य गायकी,शैलियों के बेहतरीन हिस्सों को शामिल करके अपनी खुद की एक आकर्षक और सुंदर शैली स्थापित की है I संगीतमय माता-पिता श्री मिहिर चटर्जी और श्रीमती मधुमिता चटर्जी के घर जन्मे अनोल की शुरुआती शिक्षा उनकी माँ और श्री बिश्वनाथ चौधरी से मिली। इसके तुरंत बाद यह स्वर्गीय अजीत कुमार चक्रवर्ती, श्रीमती चंदना चक्रवर्ती और श्री शांतनु भट्टाचार्य से क्रमिक रूप से जारी रही। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित भारतीय गायक पद्मश्री पंडित अजय चक्रवर्ती का प्रत्यक्ष शिष्य बनने का सौभाग्य मिला और वे अभी भी उनके संरक्षण में प्रशिक्षण ले रहे हैं। अनोल आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी, कोलकाता के पूर्व विद्वान हैं। ऑल इंडिया रेडियो, कोलकाता में ख़याल और राग प्रधान दोनों में एक स्थायी कलाकार भी हैं। वे आईसीसीआर के एक सूचीबद्ध कलाकार हैंI उन्हें संस्कृति मंत्रालय से युवा कलाकारों के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति मिली है। उन्होंने संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित युवा प्रतिभा सम्मेलन में भी प्रस्तुति दी। वे प्रतिष्ठित डोवर लेन संगीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रहे। वे 2003 से विदेश दौरे पर भी रहे। कई बार यूएसए, यूके, कनाडा और स्कॉटलैंड का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने यूके के लीड्स कॉलेज ऑफ म्यूजिक से संबद्ध संगठन एसएए यूके में भारतीय संगीत सिखाने के लिए अतिथि कलाकार के रूप में काम किया है। अनोल पिछले दस वर्षों से प्रसिद्ध संगीत संस्थान श्रुतिनंदन में प्रतिभाशाली छात्रों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। वह अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन संगीत कार्यशालाएं आयोजित करते हैं, जिनमें 20 देशों के संगीत प्रेमी नियमित रूप से शामिल होते हैं। उनके पहले एल्बम “न्यू सिग्नेचर” का उद्घाटन तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने किया था। वह आदित्य बिड़ला कला किरण पुरस्कार, भारत सरकार द्वारा युवा कलाकारों के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति, आकाशवाणी के “ए” ग्रेड कलाकार के नाम से भी विख्यात हैं। सांस्कृतिक संध्या का विधिवत शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक हॉफ श्री धनंजय मोहन ने कियाI मुख्य अतिथि के साथ दीप प्रज्वलन में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ संध्या भटनागर, रीजनल प्रोविडेंट फंड के कमिश्नर विश्वजीत सागर मौजूद रहेI तत्पश्चात रोनू मजूमदार और शशांक की बांसुरी की जुगलबंदी एक आकर्षक प्रस्तुति के साथ प्रारंभ हुई, जिसमें पंडित वी. नरहरि ने तबले पर और गुरु राघवेंद्र ने मृदंगम पर संगत की। तीन ताल की एचबी लय पर राग हंसध्वनि से गायन की शुरुआत हुई। इसके बाद उन्होंने उल्लेखनीय तालमेल के साथ पारंपरिक धुन बजाई। रोनू मजूमदार और शशांक की जोड़ी विश्व विख्यात हैI उनकी जुगलबंदी का नजारा आज साक्षात् विरासत की महफिल में देखने और सुनने को भी सौभाग्यवश सभी को मिलाI दोनों की ही जुगलबंदी आज विरासत में बहुत खूब छाई रही और उसका आनंद महफिल में भरपूर उठाया गया लोग देर तक जम रहेI जुगलबंदी की सांस्कृतिक संध्या के दौरान आकर्षक प्रस्तुति को देख और सुनकर श्रोता व दर्शकगण झूम उठेI मुख्य बात यह है कि शशांक सुब्रमण्यम भारत के एक निपुण बांसुरी वादक हैं, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत में विशेषज्ञता रखते हैं। कला में उनके योगदान के सम्मान में, फ्रांस सरकार ने उन्हें शेवेलियर डे ल’ऑर्ड्रे डेस आर्ट्स एट डेस लेट्रेस की प्रतिष्ठित उपाधि से सम्मानित किया। शशांक भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी के वरिष्ठ पुरस्कार के सबसे कम उम्र के प्राप्तकर्ता होने के लिए भी उल्लेखनीय हैं। शशांक ने अपने पिता पालघाट के.वी. नारायणस्वामी से कर्नाटक संगीत और पंडित जसराज के मार्गदर्शन में हिंदुस्तानी संगीत की शिक्षा प्राप्त की। हैरानी की बात यह है कि छोटी उम्र से ही असाधारण संगीत प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाले शशांक ने 6 साल की उम्र में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था और आज यह शख्सियत देश ही नहीं, विश्व में अपना नाम रोशन किए हुए हैंI वहीं दूसरी ओर, सांस्कृतिक दुनिया की जानी-मानी बड़ी शख्सियत रोनू मजूमदार की प्रस्तुतियों ने भी खूब रंग जमाया I उनकी सांस्कृतिक धूम एक अलग ही संगीतमय वातावरण बनाए हुए रही I  लता मंगेशकर और आरडी बर्मन के साथ अपना किरदार बना चुके रोनू मजूमदार स्वर संगीत की दुनिया में रोनू मजूमदार का नाम बड़े ही अदब और शान से लिया जाता है, क्योंकि उनकी सांस्कृतिक संगीतमय प्रस्तुतियां हर जगह लोकप्रिय हो जाती हैं I रोनू जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ली जिन्होंने स्वर्गीय पंडित पन्नालाल घोष से शिक्षा ली थी,जो बांसुरी वादन के अग्रणी थे। वह बाद में  महान बांसुरी वादक स्वर्गीय पंडित विजय राघव राव जी के शिष्य बन गए। उनको स्वर संगीत का प्रशिक्षण पंडित लक्ष्मण प्रसाद जयपुर वाले से मिला । सन् 1980 में एशियाड 82 के लिए रचित एक स्वागत गीत,प्रसिद्ध “अथ स्वागतम, शुभ स्वागतम” की रिकॉर्डिंग के समय उनकी मुलाकात भारत रत्न पंडित रविशंकर जी से हुई। श्री रविशंकर जी रोनू जी की संगीत क्षमताओं से प्रसन्न हुए I उनको सबसे पहला पुरस्कार ऑल इंडिया रेडियो से मिला I वर्ष 1999 में और भी बहुत से पुरस्कार उन्हें मिले, जैसे कि आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2014 और नवभारत टाइम्स द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, पंडित जसराज गौरव पुरस्कार, राष्ट्रीय कुमार गंधर्व पुरस्कार 2006 और वर्ष 2008 में पंडित जसराज गौरव पुरस्कार से भी वे सम्मानित हो चुके हैं।उन्हें बेला फ्लेक और अन्य के साथ एल्बम ‘टेबुला रासा’ के लिए ग्रैमी अवार्ड के लिए भी उन्हें चुना गया I उन्होंने अपना बॉलीवुड का सफर साल 1981 में आरडी बर्मन के साथ शुरू किया था। उन्होंने लता मंगेशकर के साथ भी कई बहुत यादगार गानों में परफॉर्म भी किया है, जो कि आज भी लोग सुनना बहुत पसंद करते है। वह फिल्म “माचिस” के लिए विशाल भारद्वाज के साथ भी जुड़े रहे हैं। सन् 1981 में रोनू ने ऑल इंडिया रेडियो प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता और साथ ही राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक भी जीता I उनके नाम से 30 से अधिक ऑडियो रिलीज़ हैं। संगीत के प्रति समर्पण के लिए उन्होंने 1999 में प्रतिष्ठित आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार जीता और सहारा इंडिया परिवार ने उन्हें ज्योति दिवस 2001 के अवसर पर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया। 2014 में उन्होंने प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीता।  रोनू मजूमदार रचनात्मक सुधारों के लिए युवा पीढ़ी के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। मजूमदार का संबंध मैहर घराने से  है, जिसमें पं. रविशंकर और उस्ताद अली अकबर खान जैसे मशहूर संगीतकार हैं। पूरे भारत में विभिन्न संगीत समारोहों में अपने संगीत कार्यक्रमों के अलावा भी उन्होंने मॉस्को में भारत महोत्सव और नई दिल्ली में एशियाड ’82 में भी भाग लिया थाI उन्होंने यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा,जापान,सिंगापुर, थाईलैंड,ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और मध्य पूर्व में भी भ्रमण कर ख्याति हासिल की है और भारत का नाम गर्व से ऊंचा किया हैI

 

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