‘जंगल राज’ स्थापित करना चाहती हैं भाजपा सरकार : अनन्त आकाश

संदीप गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
देहरादून, 23 नवम्बर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी देहरादून के सचिव अनन्त आकाश ने कहा की नए कोड श्रमिकों के हितों के विरुद्ध और कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में हैं। इन कोडों से श्रमिकों की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और ट्रेड यूनियन अधिकार कमजोर होंगे। ये कोड मौजूदा श्रम कानूनों में श्रमिकों के लिए मौजूद सुरक्षात्मक प्रावधानों को समाप्त या कमजोर करते हैं। विशेष रूप से “कर्मचारियों की मान्यता” और “सामाजिक सुरक्षा” से जुड़े प्रावधानों पर चिंता जताई है। नए कोडों में हड़ताल के अधिकार पर लगाई गई नई शर्तों और पाबंदियां हैं। इससे ट्रेड यूनियनों की सौदेबाजी की शक्ति प्रभावित होगी। इन कोडों को संसद में पेश करने और पारित करने की प्रक्रिया पर भी सवाल हैं। इन महत्वपूर्ण कानूनों पर पर्याप्त बहस नहीं हुई और स्टैण्डिंग कमेटी जैसे संसदीय तंत्रों को इन्हें ठीक से देखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया। श्रम एक समवर्ती विषय होने के बावजूद, केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से उचित सलाह-मशविरा नहीं किया। ससे संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचा है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी देहरादून के सचिव अनन्त आकाश ने कहा की नये कोड श्रमिक-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी और संघवाद के विरुद्ध है। ये श्रम संहिताएं श्रमिकों के 29 लम्बी कुर्बानी से हासिल कानूनों को खत्म कर देती हैं, जो अब तक कुछ हद तक श्रमिकों की सुरक्षा करते थे। इन कानूनों में कई कमियों के बावजूद, कुछ हद तक मजदूरी, काम के घंटे, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा, निरीक्षण-अनुपालन तंत्र और सामूहिक सौदेबाजी कि सुविधा मौजूद रही है। नई संहिता सरलीकरण के बजाय, लंबे समय से स्थापित मौजूदा अधिकारों और हकों को कमजोर करने और खत्म करने तथा संतुलन को मालिको़ के पक्ष में स्पष्ट रूप से स्थानांतरित करने का प्रयास करती हैं। मोदी सरकार का यह दावा कि श्रम संहिताएं रोजगार और निवेश को बढ़ावा देंगी, पूरी तरह से निराधार है। ये संहिताएं पूंजी के हमले के सामने श्रम को संरक्षण देने के बजाय अरक्षित करती हैं। इनका उद्देश्य मात्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पूंजी को आकर्षित करना है, यह सुनिश्चित करके कि श्रम अधिकारों के विभिन्न पहलुओं को संरक्षण देने वाले सभी सार्थक नियम रद्द करने का रास्ता खोलते हैं। इसके अलावा, वे हड़ताल के अधिकार को छीनना और श्रमिक वर्ग की किसी भी सामूहिक कार्रवाई को अपराध की श्रेणी लाने का रास्ता खोलती है। श्रम संहिताएं, कुल मिलाकर, सरकार और प्रशासन के सक्रिय संरक्षण के साथ कॉर्पोरेट वर्ग को श्रमिकों के अधिकारों और हकों को रौंदने के लिए एकतरफा रूप से सशक्त बनाकर एक ‘जंगल राज’ स्थापित करना चाहती हैं। इन संहिताओं को हितधारकों, विशेष रूप से श्रमिकों के साथ वास्तविक त्रिपक्षीय विचार-विमर्श के बिना थोपने में लोकतांत्रिक और संघीय मानदंडों के सकल वीभत्स उल्लंघन का रास्ता निन्दन्दनिय कदम है। सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान ट्रेड यूनियनों को किनारे कर दिया और बिना बहस के संसद में विधेयक को पारित करा दिया। बल्कि, सरकार ने श्रम संहिताओं पर आपत्तियों को, जो अकाट्य तर्कों और ठोस दस्तावेजी सबूतों पर आधारित थीं, को एकतरफा खारिज कर दिया। उत्तराखण्ङ में पहले ही हड़ताल रोकने कै लिऐ एस्मा कानून का सहारा लिया जा चुका है ,जहाँ न्यायालय के दिशानिर्देशों को दरकिनार कर आन्दोलित 22 हजार उपनल कर्मचारियों कै खिलाफ दमनात्मक कार्यवाही की तैयारी चल रही है हालांकि सरकार कै कदम का चारों तरफ से जोरदार विरोध हो रहा है।

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