मेयर सुनील उनियाल गामा ने किया घंटाघर के सौंदर्यीकरण कार्य का शिलान्यास

संदीप गोयल\एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून, 29 जून 2019। राजधानी के ऐतिहासिक घंटाघर के दिन अब सुधरने वाले हैं। ओएनजीसी के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) फंड की मदद की से सौंदर्यीकरण के लिए 85 लाख रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई है। साथ ही मेयर सुनील उनियाल गामा ने इस घंटाघर के सौंदर्यीकरण का शिलान्यास कर दिया है। शिलान्यास कार्यक्रम में भाजपा के अनेक पार्षद मौजूद रहे। घंटाघर के सौंदर्यीकरण का काम पिछले एक साल से रुका हुआ था, जिसका शिलान्यास शुक्रवार को मेयर सुनील उनियाल गामा ने किया। ओएनजीसी ने घंटाघर के सौंदर्यीकरण के लिए लगभग 85 लाख की धनराशि दी गई है। इस धनराशि से घंटाघर के चारों और बगीचा, नई रेलिंग, जालियां लगाई जाएंगी। इसके अलावा रंगीन फव्वारे और हाई बीम लाइटिंग की जाएगी, जिससे शाम को यह लोगों को आकर्षित कर सके। मेयर सुनील उनियाल गामा ने अधिकारियों को 4 महीने में इस कार्य को पूरा करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही बताया कि घंटाघर शहर की धरोहर है। इसको फिर से नया रूप देना हमारी प्राथमिकता है।

ओएनजीसी के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) फंड की मदद से घंटाघर के सौंदर्यीकरण के लिए 85 लाख की धनराशि स्वीकृत की गई है। इस कार्य को लगभग 1 साल पहले किया जाना था लेकिन नगर निगम की हिला वली के चलते इसका शिलान्यास अब हो पाया है।

घंटाघर का शिलान्यास 24 जुलाई 1948 को यूपी की तत्कालीन राज्यपाल सरोजिनी नायडू ने किया। करीब पांच साल में इसकी इमारत बनकर तैयार हुई। इसका उद्घाटन 19 अक्तूबर 1953 को तत्कालीन केंद्रीय रेलवे व यातायात मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने किया। उस समय सिटी बोर्ड के अध्यक्ष केशवचंद्र थे और महाराज प्रसाद जैन, डा. बृजलाल भंडारी उप प्रधान थे। घंटाघर चौक का लोकार्पण वर्ष 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया।

घंटाघर लाल आनंद सिंह रईस ने अपने पिता स्व. लाला बलबीर सिंह रईस की याद में बनवाया था। 1936 में उनका देहांत हो गया था। इसके निर्माण में बलबीर सिंह की पत्नी मनभरी देवी का खास योगदान रहा। तब इसका नाम बलबीर क्लॉक टावर रखा गया था। सिटी बोर्ड को 25 हजार रुपये दान राशि दी गई थी। इसके अलावा लाला हरि सिंह, लाला शेर सिंह और लाला अमर सिंह ने भी घंटाघर निर्माण में दान किया था। उस वक्त नगर पालिका के चेयरमैन आनंद स्वरूप और इंजीनियर एसएस गुप्ता थे।

घण्टाघर षट्कोणीय आकार का है, जिसके शीर्ष पर छः मुखों पर छः घड़ियाँ लगी हुई है। यह बिना घण्टानाद का सबसे बड़ा घण्टाघर है। इसका षट्कोणनुमा ढाँचा अपने प्रकार का एशिया में विरला है।

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