आत्मनिवेदन भक्ति का अर्थ : आचार्य श्री
एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
देहरादून, 13 जुलाई। संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में श्री दिगंबर जैन पंचायती मंदिर जैन भवन 60 गांधी रोड पर आज प्रातः 6.15 बजे से जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक कर शांतिधारा की गयी। विधानाचार्य संदीप जैन सजल इंदौर, रामकुमार एंड पार्टी संगीतकार भोपाल द्वारा संगीतमय कल्याण मंदिर विधान चल रहा है। विधान मे उपस्थित भक्तो ने बड़े भक्ति भाव के साथ 23वे तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना की। आज के विधान के पुण्यार्जक सौरभ सागर सेवा समिति रही। सभी पदाधिकारी ने इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया। आचार्य श्री ने प्रवचन मे कहा की धार्मिक विधान का भक्तों, “भक्ति” का अर्थ है भगवान के प्रति प्रेम, समर्पण और श्रद्धा की भावना। यह एक आध्यात्मिक मार्ग है जो भक्तों को भगवान के करीब लाता है। भक्ति के कई रूप हैं, जैसे कि श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन भक्ति का अर्थ है। श्रवण भगवान की कथाओं और महिमा को सुनना भगवान के गुणों का गुणगान करना भगवान को हमेशा याद रखना भगवान के चरणों की सेवा करना स्वयं को भगवान को समर्पित करना भक्ति एक व्यक्तिगत अनुभव है, और प्रत्येक भक्त इसे अपने तरीके से व्यक्त करता है। कुछ लोग मंदिरों में जाते हैं, कुछ लोग भजन गाते हैं, कुछ लोग ध्यान करते हैं, और कुछ लोग दूसरों की सेवा करते हैं। भक्ति का अंतिम लक्ष्य भगवान के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करना और उनके प्रेम और आनंद का अनुभव करना है।
