एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून, 25 अक्टूबर। छठ का व्रत महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। आज नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा की शुरुआत हो गई हैं। चार दिनों तक चलने वाला यह पावन पर्व पूरे उत्साह और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। छठ पूजा में बांस से बनी कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनमें सूप सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सूप को सूर्य पूजा का अनिवार्य हिस्सा कहा गया है, क्योंकि इसके बिना यह अनुष्ठान अधूरा माना जाता है। सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते समय सूप का प्रयोग किया जाता है। इसमें फल, ठेकुआ और अन्य प्रसाद रखकर श्रद्धा के साथ सूर्य भगवान को समर्पित किया जाता है। यह सूप न केवल पूजा का साधन है, बल्कि भक्ति और परंपरा का प्रतीक भी है। छठ पूजा सूर्य देव और उनकी बहन छठी मइया की उपासना के लिए की जाती है। सूर्य जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के प्रतीक हैं, जबकि छठी मइया संतान, समृद्धि और कल्याण की देवी मानी जाती हैं। छठ पूजा पूरी तरह श्रद्धा, आस्था और पवित्रता पर आधारित है। इसमें व्रती स्वयं ही पुरोहित और यजमान बनकर पूजा करते हैं। छठ मैया के बारे में कथा है कि यह ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन हैं। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में शास्त्रों में बताया गया है जबकि सूर्यदेव अन्न और संपन्नता के देवता है। इसलिए जब रवि और खरीफ की फसल कटकर आ जाती है तो छठ का पर्व सूर्य देव का आभार प्रकट करने के लिए चैत्र और कार्तिक के महीने में किया जाता है। नहाय-खाय से लेकर खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य तक हर चरण में केवल लोक आस्था और भक्ति की भावना प्रमुख रहती है।  26 अक्तूबर को खरना पूजन होगा। इस दिन व्रती पूरा दिन उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद छठी मैया को प्रसाद चढ़ाकर अपना उपवास तोड़ते हैं। प्रसाद परिवार और मित्रों में बांटा जाता है।

छठ पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है जिसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है जिसका आरंभ चतुर्थी तिथि से हो जाता है और समापन सप्तमी तिथि पर होता है। छठ पर्व पर व्रती कमर तक जल में प्रवेश कर सूर्यदेव को अर्घ्य देते है।

छठ पर्व मुख्य रूप से षष्ठी तिथि को किया जाता है। लेकिन इसका आरंभ नहाय खाय से हो जाता है यानी छठ पर्व शुरुआत में पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात,कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमें शाम के समय व्रती गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाती हैं और पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व को समापन किया जाता है।

26 अक्टूबर- खरना दूसरे दिन, व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और फल खाए जाते हैं।

27 अक्टूबर- संध्या अर्घ्य तीसरे दिन, व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।

28 अक्टूबर- प्रातःकालीन अर्घ्य चौथे दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं।

छठ पूजा का प्रसाद :- छठ पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फलों और नारियल का प्रयोग किया जाता है। ये सभी प्रसाद शुद्ध सामग्री से बनाए जाते हैं और सूर्य देवता को अर्पित किए जाते हैं।

 

 

 

 

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