सनातन संत सम्मेलन 2025 : भारत की आध्यात्मिक चेतना का भव्य उद्घोष
भगवती प्रसाद गोयल /एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
नई दिल्ली/ऋषिकेश, 15 नवम्बर। भारत मंडपम, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित सनातन संत सम्मेलन 2025 ने भारत की आध्यात्मिक विरासत, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रधर्म को विश्वमंच पर नई ऊँचाइयों पर स्थापित किया। ओम सनातन न्यास द्वारा आयोजित यह भव्य सम्मेलन, सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण, समरस समाज और नैतिक राष्ट्रनिर्माण का सशक्त उद्घोष है। सनातन संत सम्मेलन-2025 में देश के 300 से अधिक पूज्य संत, प्रमुख धर्मगुरु, विद्वान, वैज्ञानिक, ब्यूरोक्रेट्स, विचारकों एवं अनेकों संस्थाओं ने सहभाग किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सनातन संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन और पुनर्जागरण करना है। इस अवसर पर एकल अभियान, भारत लोक शिक्षा परिषद, गीता परिवार, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन, भारतीय संस्कृति वैश्विक न्यास एवं सिद्धपीठ श्री बाबा धाम को सम्मानित किया गया।
मुख्य न्यास स्वामी श्री गोविंददेव गिरि जी महाराज का दिव्य सान्निध्य, जिनकी प्रेरक वाणी और शांतिमय आभा ने कार्यक्रम को आध्यात्मिक तेज प्रदान की। परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के अध्यक्ष, विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक मार्गदर्शक स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज की उपस्थिति ने सम्मेलन को असाधारण महत्ता प्रदान की। इस पावन अवसर पर अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष श्रीमहा निवार्णी अखाड़ा के श्रीमंहत श्री रविन्द्र पुरी जी महाराज का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। स्वामीजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सनातन कोई संप्रदाय नहीं, बल्कि समस्त मानवता का जीवनदर्शन है, जो प्रकृति, संस्कृति और करुणा को एक सूत्र में पिरोता है। सम्मेलन में भारत के विभिन्न पीठों और परंपराओं से आए संतों, महामंडलेश्वर, आचार्यों और विद्वानों ने विविध विषयों पर गहन मंथन किया। भारत मंडपम का विशाल परिसर संतों की उपस्थिति से मानो तपोभूमि में परिवर्तित हो गया। विभिन्न सत्रों में प्रस्तुत हुए विचार, भाषाएँ और आशीर्वचन इस भावना के केंद्र में थे कि भारत की आत्मा सनातन में बसती है, और यही सनातन वैश्विक कल्याण का मार्ग प्रकाशित करता है। सम्मेलन में विविध परंपराओं, वेदांत, योग, भक्ति, कर्म और ज्ञान का समन्वय देखने को मिला। इसने यह संदेश दिया कि “सनातन की शक्ति विविधता में भी एकता में बसती है।” संतों ने युवाओं को संदेश दिया कि वे भारतीय संस्कृति, परंपरा और जीवन-मूल्यों पर गर्व करें। आधुनिक विज्ञान, तकनीक और नवाचार के साथ जब संतुलन जुड़ता है, तभी एक पूर्ण और समृद्ध समाज का निर्माण होता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत केवल एक राष्ट्र नहीं, बल्कि एक जीवित आध्यात्मिक चेतना है। सनातन ही भारत की आत्मा है, और यही आत्मा विश्व के भविष्य को दिशा देगी। सनातन, सदियों से प्रवाहित होती वह शाश्वत चेतना है, जो समय, स्थान और परिस्थितियों की सीमाओं से परे है। यह वह अविनाशी जीवन-दर्शन है जिसने मानवता को सत्य, करुणा, समरसता, कर्तव्य, धर्म और आत्मोन्नति का मार्ग दिखाया। सनातन वह दिव्य परंपरा है जहाँ प्रकृति पूज्य है, मानवता परिवार है, और जीवन ईश्वर की अनुभूति का माध्यम। सनातन में न कोई विरोध है, न सीमाएँ, यह स्वीकार, संवाद और समन्वय की धारा है। आज जब विश्व भ्रम, संघर्ष और तनावों से जूझ रहा है, सनातन का उज्ज्वल प्रकाश मानवता को पुनः संतुलन, शांति और वैश्विक सद्भाव की ओर ले जाता है। सनातन वह शक्ति है जो सम्पूर्ण मानवता को प्रकाश देती है, समाज को दिशा देती है और संसार को नई आशा देती। ओम सनातन न्यास द्वारा आयोजित यह सम्मेलन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रीय स्वाभिमान और मानवीय मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का भी सशक्त माध्यम बना। भारत के संतों द्वारा दिया गया यह संकल्प “धर्म, राष्ट्र और मानवता तीनों का समन्वय ही नवभारत का आधार बनेगा” आने वाले समय के लिए पथप्रदर्शक सिद्ध होगा। मुख्य संयोजक श्री नीरज रायज़ादा जी, न्यासी श्री बासुदेव गर्ग जी, श्री लोकेश शर्मा जी, श्री देवेन्द्र पंवार जी और विभिन्न विभूतियों की गरिममायी उपस्थिति रही।
