1774 में पड़ी थी संगठित डाक सेवा की नींव, कोलकाता में खुला था पहला डाकघर
संदीप गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस
देहरादून, 20 दिसंबर। शुरुआती डाकघर मुख्य रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश सेना की जरूरतों को पूरा करते थे, लेकिन जल्द ही आम नागरिकों के लिए भी संचार का माध्यम बन गए। यह क्षेत्र सैन्य रणनीति का हिस्सा था और इन डाकघरों ने ब्रिटिश प्रशासन के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में डाक सेवा ब्रिटिश साम्राज्य के प्रशासनिक और सैन्य विस्तार के साथ शुरू हुई, जिसका उद्देश्य संचार को व्यवस्थित करना था, जिसमें लंढौर और देहरादून के शुरुआती डाकघर महत्वपूर्ण मील के पत्थर थे। देहरादून में डाक सेवा की शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई, जब 1815 के बाद कुमाऊं-गढ़वाल विजय के साथ संचार लिंक स्थापित किए गए, जिसमें मसूरी का लंढौर डाकघर 1909 तक प्रमुख था और 1836 के आसपास मुख्य डाकघर मसूरी में स्थापित हुआ, देहरादून में डाक सेवा की शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई, जब 1815 के बाद कुमाऊँ और गढ़वाल पर कब्ज़ा करने के बाद अंग्रेजों ने संचार के लिए 1830 के दशक में डाकघर खोले, जिनमें से मसूरी का लंढौर डाकघर (1837 में स्थापित) और देहरादून का पहला डाकघर ओल्ड कैंट परेड ग्राउंड के पास सबसे शुरुआती उदाहरण थे, जो सैन्य और प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करते थे। जबकि भारत में संगठित डाक सेवा की नींव 1774 में कोलकाता में पहले डाकघर से पड़ी, जिसे 1854 में आधुनिक रूप दिया गया, और उत्तराखंड डाक परिमंडल 2001 में बना, जिससे देहरादून एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। 1815 के बाद अंग्रेजों ने कुमाऊं और गढ़वाल पर कब्ज़ा करने के बाद प्रशासनिक संचार के लिए डाक लाइनें शुरू कीं, जिसमें अल्मोड़ा-श्रीनगर मार्ग पहला औपचारिक डाक मार्ग था। अंग्रेजों ने सामरिक महत्व के कारण मसूरी, नैनीताल और देहरादून जैसे स्थानों पर डाकघर स्थापित किए। लढौर डाकघर को वर्ष 1837 में कैप्टन फ्रेडरिक यंग द्वारा स्थापित किया गया था, यह डाकघर ब्रिटिश अधिकारियों के लिए था और 1909 तक मुख्य डाकघर के रूप में कार्य किया, जिसके बाद मसूरी के कुलड़ी में नया जीपीओ खुला। जिसका इतिहास 1836 से भी पहले (शायद 1800 के दशक की शुरुआत में) का हो सकता है, जो रॉक स्टोन हाउस में स्थित था। मसूरी में चार्लेविले, बार्लोगंज, लाइब्रेरी बाजार (बाद में सवॉय होटल) जैसी कई शाखाएँ थीं। 1774 में वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में पहला डाकघर खोला था। 1854 में लॉर्ड डलहौजी के समय में भारत में एक केंद्रीकृत और संगठित डाक प्रणाली शुरू हुई, जिसने डाक टिकटों का प्रचलन किया। उत्तराखंड के पहाड़ों में 18वीं शताब्दी में डाक हरकारे (डाकिए) घुंघरू लगे भाले के साथ चिट्ठियां बांटने का काम करते थे। यह भाला जंगली जानवरों से बचाव के लिए था, और घुंघरू दूर से उनकी उपस्थिति की सूचना देते थे। मसूरी और आसपास के क्षेत्रों में चार्लेविले होटल (1854), बार्लोगंज (1890), लाइब्रेरी बाजार और झड़ीपानी जैसे क्षेत्रों में डाकघर की शाखाएं खुलीं, जो समय के साथ बंद या विलय हो गईं।
2001 मे उत्तराखंड डाक परिमंडल का गठन हुआ, जिसके तहत देहरादून एक क्षेत्रीय मुख्यालय बना और यहाँ डाकघरों का एक बड़ा नेटवर्क फैला। देहरादून, उत्तराखंड परिमंडल का केंद्र होने के नाते, डाक सेवाओं के विस्तार और नई पहल, जैसे हवाई सेवाओं के माध्यम से स्पीड पोस्ट पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
