वनों में लगी आग के लिए बडे अधिकारियों की जिम्मेदारी निर्धारित कर की जाय कार्रवाई

एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून, 09 मई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में लगी आग का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार द्वारा कुछ छोटे कर्मचारियों और अधिकारियों पर की गई कार्रवाई पर तंज कसते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा जिस प्रकार कुछ छोटे कर्मचारियों और अधिकारियों पर की गई कार्रवाई को समझ से परे बताते हुए कहा कि विभागीय कर्मचारियों के खिलाफ की गई इस कार्रवाई से राज्य सरकार ने केवल लीपापोती करने का काम किया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे पत्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री करन माहरा ने कहा कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक वनों में लगी भीषण आग से प्रदेश की अमूल्य वन सम्पदा के साथ-साथ वन्य पशु, वृक्ष-वनस्पतियां, जल स्रोत और यहां तक कि ग्लेशियर भी संकट में है। प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकाल शुरू होते ही उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के जंगल आग से धधकने लगते हैं, परन्तु राज्य सरकार इस आपदा से निपटने के लिए समय रहते इंतजामात करने में पूरी तरह विफल रही है। समय पर बरसात न होने के कारण वनों में लगी आग लम्बे समय तक जलती रहती है तथा प्रत्येक वर्ष इस वनाग्नि में न केवल भारी जन हानि के साथ ही करोड़ों रूपये की वन सम्पदा जल कर नष्ट हो जाती है, अपितु वन्य जीवों को भी भारी नुकसान पहुंचता है जो कि गम्भीर चिंता का विषय है। करन माहरा ने कहा कि विभागीय उच्च अधिकारियों की लापरवाही के चलते वनों में लगने वाली आग पर काबू पाने में वन विभाग पूरी तरह से नाकाम रहा है। जिस प्रकार राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के जंगल आग से धधक रहे हैं तथा आग बुझाने के लिए कोई भी इंतजामात नहीं किये जा रहे हैं उसके लिए वन विभाग के बडे स्तर के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए थी परन्तु राज्य सरकार की ओर से वन विभाग के कुछ छोटे कर्मचारियों एवं अधिकारियों पर कार्रवाई करते हुए अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर दी गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने एक बार फिर दोहराया कि राज्य निर्माण से पूर्व पर्वतीय क्षेत्र के वनां में लगने वाली आग का भयावह रूप देखने को नहीं मिलता था, इसका एक स्पष्ट कारण यह था कि पर्वतीय वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की रोजी-रोटी कुछ हद तक वनों पर निर्भर करती थी तथा स्थानीय, जल, जंगल व जमीनांं पर अपना अधिकार समझ कर उनकी रक्षा का दायित्व भी खुद संभालते थे, परन्तु आज वन एवं पर्यावरण विभाग के नियमों की कठोरता के चलते ऐसा संभव नहीं है। करन माहरा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मांग की कि वनों में लगी भीषण आग को गम्भीरता से लेते हुए वन विभाग के उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी निर्धारित करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाय तथा यदि संभव हो तो पर्वतीय क्षेत्रों के वनों में धधकती आग को बुझाने के लिए स्थानीय ग्रामीणों की सहायता के साथ ही हैलीकॉप्टर से पानी का छिडकाव करने के इंतजाम किये जांय।

 

 

 

 

 

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