संदीप गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून, 02 नवंबर। बाबा खाटू श्याम जी का जन्मोत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। श्री खाटू श्याम मंदिर खुड़बुड़ा मौहल्ला में बाबा खाटू श्याम जी के जन्मोत्सव के पावन अवसर पर भव्य खाटू श्याम संकीर्तन एव भंडारे का आयोजन किया गया। दो लाख से अधिक श्रद्धालु ने बाबा खाटू श्याम के दर्शन किये। इस अवसर पर अमित सखूजा के द्वारा दीप प्रज्वलित कर कीर्तन शुरू किया गया। साय 08 बजे से रात्रि 1 :45 बजे तक भव्य संकीर्तन हुआ। जिसमे भजन गायक पवन सोनियाल ने अपनी मधुर वाणी से बाबा खाटू श्याम के भजन गाये। “गजब मेरे खाटू वाले”, “वो खाटू वाला श्याम धणी मेरा यार है”, “हार गया मैं बाबा अब तो दामन थाम ले”, “सेठों का सेठ खाटू नरेश”, “तू कृपा कर बाबा, कीर्तन करवाऊंगा” जैसे भजनो पर श्रद्धालु झूमने पर मजबूर हो गए।

श्री खाटू श्याम मंदिर खुड़बुड़ा मौहल्ला के पंडित आचार्य श्री सुबोध कांत सेमवाल ने बताया की बाबा खाटू श्याम की कहानी महाभारत काल से जुड़ी है और वे घटोत्कच के पुत्र और भीम के पोते थे, जिनका असली नाम बर्बरीक था। खाटूश्याम जी पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे वे अतिबलशाली भीम के पुत्र घटोट्कच और प्रागज्योतिषपुर (वर्तमान आसाम) के राजा दैत्यराज मूर की पुत्री कामकटंककटा “मोरवी” के पुत्र थे। बर्बरीक ने माँ के कहने पर हारने वाले पक्ष का साथ देने का वचन दिया था। युद्ध में जाने से पहले, भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा ली और उनसे उनका सिर दान में मांगा, जिसे बर्बरीक ने सहर्ष दे दिया। इस बलिदान से प्रसन्न होकर, श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम “श्याम” से पूजे जाने का वरदान दिया। उन्होंने देवी मां की तपस्या करके तीन अभेद्य तीर प्राप्त किए थे। युद्ध में जाने से पहले, बर्बरीक ने अपनी माँ से आशीर्वाद लिया और उन्हें यह वचन दिया कि वे युद्ध में हमेशा हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। महाभारत युद्ध के दौरान, श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण का भेष धारण कर बर्बरीक की परीक्षा ली। बर्बरीक की प्रतिज्ञा की सच्चाई जानने के लिए, श्रीकृष्ण ने उनका सिर दान में मांगा। बर्बरीक ने अपने वचन का पालन करते हुए अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को दान कर दिया। बर्बरीक के इस महान बलिदान से प्रसन्न होकर, श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में उनकी पूजा “खाटू श्याम” के रूप में होगी और वे “हारे का सहारा” कहलाएंगे। श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे भक्तों का केवल तुम्हारे नाम का सच्चे दिल से उच्चारण मात्र से ही उद्धार होगा। यदि वे तुम्हारी सच्चे मन और प्रेम-भाव से पूजा करेंगे तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफ़ल होंगे।

श्री श्याम बाबा का शीश खाटू गांव (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में एक नदी में प्रकट हुआ, जहाँ एक गाय प्रतिदिन दूध अर्पित करती थी। खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है।

 

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