मोदी सरकार के दबाव में जनहित के कार्यों से हम पीछे हटने वाले नहीं : करन माहरा

संदीप गोयल/एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून 4 अगस्त। कांग्रेस पार्टी महंगाई, बेरोजगारी और खाद्य पदार्थों के ऊपर लगी जीएसटी तथा अग्निपथ योजना के खिलाफ लगातार आन्दोलन करती रहेगी, चाहे केन्द्र सरकार कितना भी दबाव बना ले कांग्रेस जनहित के कार्यों से पीछे हटने वाली नहीं है।

उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि बेतहाशा बढती मंहगाई, बेरोजगारी तथा आवश्यक खाद्य पदार्थों पर लगाई गई जी.एस.टी. और अव्यवहारिक अग्निपथ योजना के खिलाफ लगातार आन्दोलन करती रहेगी तथा इसी परिपेक्ष में कल दिनांक 5 अगस्त, को प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा राजभवन घेराव कार्यक्रम आयोजित किया गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि आज सारा देश देख रहा है, 24, अकबर रोड के सामने, 10 जनपथ के सामने, 12 तुगलक लेन के सामने किस तरीके से दिल्ली पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों ने हमारे पार्टी मुख्यालय, सोनिया गांधी जी के रेजिडेंस और राहुल गांधी जी के मकान को भी घेर लिया है। इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी महंगाई, बेरोजगारी और खाद्य पदार्थ के ऊपर लगे जीएसटी, इनके ऊपर कांग्रेस पार्टी आंदोलन करती रहेगी, हम पीछे हटने वाले नहीं हैं, केन्द्र की मोदी सरकार चाहे जितना मर्जी दबाव डाल लें। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पर तरह-तरह से दबाव डाला जा रहा है ताकि हम महंगाई, बेरोजगारी और खाद्य पदार्थों के ऊपर, जीएसटी को लेकर दबाव और प्रदर्शन तथा जनता के मुद्दे ना उठाएं। उन्होंने कहा कि 5 अगस्त को कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री निवास पर महंगाई, बेरोजगारी और खाद्य पदार्थों के ऊपर जीएसटी के खिलाफ प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा है। करन माहरा ने कहा कि मोदी सरकार में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास किया जा रहा है। ये प्रतिशोध की राजनीति है, ये धमकी की राजनीति है। महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ हमने अपनी आवाज उठाई है संसद में और संसद के बाहर। हमारी पार्टी के दफ्तरों के सामने, हमारे नेताओं के घर के सामने, ये बिल्कुल साफ है कि प्रधानमंत्री भय की राजनीति, प्रतिशोध की राजनीति, धमकी की राजनीति में विश्वास रखते हैं। ये लोकतांत्रिक तरीका नहीं है। हम भागेंगे नहीं, हमें जनता की आवाज उठाने से चुप नहीं कराया जा सकता है। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ, उनकी विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ हम जनता के हित में अपनी आवाज उठाते रहेंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि देश में पिछले 8 साल में महंगाई, बेरोजगारी बेतहाशा बढी है, अब खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाकर जनता की कमर तोडी जा रही है। केन्द्र की मोदी सरकार बिना सोचे-समझे अग्निपथ योजना लाई गई है। हम दो, हमारे दो, कुछ चुने हुए पूंजीपतियों के लिए जो आर्थिक नीतियां बनाई जा रही हैं, उनके खिलाफ हमारी आवाज उठेगी। हम लोग देश की जनता के हितों की आवाज, देश की आवाज, महंगाई, बेरोजगारी और खाद्य पदार्थों के ऊपर जीएसटी लगी है, इसके खिलाफ, हम इस आवाज को उठाते रहेंगे परन्तु यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज जो भी कार्यवाही हो रही है, जो भी भाजपा की सरकार कर रही है, वो केवल और केवल कांग्रेस पार्टी को डराने के लिए और साथ-साथ माहौल को दूसरी तरफ ले जाने के लिए ताकि देश में कोई महंगाई और बेरोजगारी की बात न कर सके। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भाजपा के घर-घर तिरंगा योजना पर कहा कि भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो राष्ट्रवाद की सबसे ज्यादा बातें करता है, दरअसल तिरंगा और भारतीय संविधान का प्रारंभिक विरोधी रहा है। 1950 से लेकर 2002 तक उसने कभी अपने नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया जबकि संघ से प्रतिबंध इसी शर्त पर हटाया गया था कि वो भारत के अधिकृत राष्ट्रध्वज एवं संविधान में आस्था प्रदर्शित करेंगे। 1950 के बाद से संघ ने कभी भी नागपुर स्थित अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया। उन्होंने वहां पर सिर्फ भगवा ध्वज ही फहराया। फिर चाहे मौका स्वतंत्रता दिवस का रहा हो या फिर गणतंत्र दिवस का। आधी सदी से ज्यादा गुजर जाने के बाद उन्होंने 2002 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनने के बाद पहली बार नागपुर स्थित संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराना प्रारंभ किया। कुछ इसी से मिलते जुलते विचार श्री गुरूजी के उपनाम से जाने जाने वाले एमएस गोलवलकर के भी थे। वे संघ के दूसरे सरसंघचालक और भारत में अभी तक सक्रिय हिंदुत्व आंदोलन के प्रेरणास्रोत रहे हैं। गोलवलकर ने न सिर्फ भारतीय तिरंगे के विचार का खुलकर विरोध किया बल्कि उनका तो भारतीय संविधान में भी विश्वास नहीं था जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक बंच आॅफ थाउट में भी किया है। एक अन्य मामले में प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य में स्वास्थ्य सुविधायें चैपट हो चुकी हैं। देश और दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में मातृ मृत्यु दर का ग्राफ नीचे की तरफ आया है लेकिन उत्तराखंड में पिछले 5 सालों में मातृ मृत्यु दर के मामले बढ़े हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां, अस्पतालों की दूरी, अस्पतालों में जरूरी सुविधाओं का न होना, विशेषज्ञ डॉक्टरों का न होना जैसी मुश्किलें हिमालयी राज्य की महिलाओं के सुरक्षित प्रसव में बाधा बन रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच कुल 798 महिलाओं ने प्रसव के दौरान या प्रसव से जुड़ी मुश्किलों के चलते दम तोड़ा। वर्ष 2016-17 में राज्य में कुल 84 मातृ मृत्यु हुई। 2017-18 में 172, 2018-19 में 180, 2019-20 में 175 और 2020-21 में 187 महिलाओं ने बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया में जान गंवाई। स्वास्थ्य विभाग में 64 प्रतिशत महिला रोग विशेषज्ञों की कमी है। सरकारी अस्पतालों में करीब 60 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में मातृ-शिशु मृत्यु दर को रोकना बड़ी चुनौती है। पत्रकार वर्ता में प्रदेश उपाध्यक्ष प्रशासन/संगठन मथुरादत्त जोशी, महामंत्री संगठन विजय सारस्वत, मीडिया पैनलिस्ट गरिमा दसौनी, अमरजीत सिंह, दर्शन लाल आदि उपस्थित थे।

 

 

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