एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून 25 अगस्त। गाँधी रोड़ स्थित खुशीराम लायब्रेरी मे केदारनाथ आपदा की पुनरावृत्ति के बाद अब धराली औऱ थराली एवं पौड़ी के साथ पिथौरागढ़ विनाश को देखते हुये “जनसंवाद” के माध्यम से गोष्ठी आयोजित हुई। जनसंवाद मेँ भरसार विश्वविद्याल के रजिस्ट्रार डा॰ एसपी सती की अध्यक्षता एवं पदमश्री मैती संस्था के कल्याण सिंह के सुझाव के साथ संयुक्त नागरिक संगठन की इस गोष्ठी मेँ महत्वपूर्ण लोगो के सुझाव एकत्र किये जिसका एक ड्राफ्ट तैयार शासन मेँ मुख्यसचिव को सौंपा जायेगा। डा॰ एसपी सती ने कहा कि इस पर आपदा को देखते हुये हमें यात्रा प्रबन्धन पर जोर दिया जाय, वनाग्नि पर नियंत्रण हेतु गंभीरता सें हो, कांवड़ यात्रा को नियंत्रित औऱ पहाड़ी क्षेत्र सीमाएं तय हो, आपदा प्रबन्धन पर ठोस कमेटी बने। आयोजित जनसंवाद में वक्ताओं का ये भी निष्कर्ष था की  आपदाओं की पूर्व चेतावनी हेतु सभी संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में हाईटेक  अल्ट्रासोनिक डॉपलर रडार सिस्टम लगाए जाने जरूरी है।यदि ये सिस्टम इन जगहों पर लगे होते तो पूर्व चेतावनी से जान माल के नुकसान को रोका जा सकता था। वक्ताओं की मांग थी की उत्तराखंड में संभावित भावी आपदाओं विषय पर गठित की जाने वाली उच्च स्तरीय वैज्ञानिक समिति में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ वाडिया इंस्टीट्यूट,जिओ लॉजिकल सर्वे आफ इंडिया, आईoआईoटीo रुड़की, पर्यावरण संरक्षण विभाग, नेशनल सेंटर फॉरसिस्टोलॉजी, एसडीआरएफओ, यूसैक आदि के वैज्ञानिकों के साथ वनविभाग, स्थानीय प्रशासन, शहरी विकास विभाग को भी शामिल कर योजनाएं बनानी जरूरी हैं। सुशील त्यागी की मांग थी की राज्य मेंआपदा प्रबंधन मंत्रालय सें संबंधित योजनाओं की समीक्षा तथा इनके क्रियान्वयन हेतु किसी एक विधायक को आपदा राहत प्रबंधन विभाग का मंत्री बनाया जाय। जिससे मंत्री स्तर पर जिम्मेदारी निर्धारित हो सके। गिरीश चंद्र भट्ट ने सुझाव दिया की आपदा प्रबंधन हेतु स्थानीय, ग्राम, नगर, जिला स्तर पर नए सिरे से समितियों का गठन किया जाय। इसमें गैर सरकारी संगठन जैसे रेड क्रॉस, सिविल डिफेंस, पर्यावरणप्रेमी संस्थाएं शामिल हों जो वहां के गाड गधेरो,नदी नालों में जमा गाध आदि की सफाई तथा आवश्यकतानुसा रिटेनिंग वॉल आदि की योजनाएं बन सके। अवधेश शर्मा का निष्कर्ष था प्राकृतिक आपदाओं में प्रभावितों की सुरक्षा,स्वास्थ्य, भोजन, तत्कालीन आवास आदि की जरूरत में ये सरकारी अधिकारियों के साथ समन्वय बनाते हुए सहयोग कर सकते हैं। उमेश्वर सिंह रावत ने कहा नदी नालों के किनारे आवास, होटल, होमस्टे आदि को पूर्णतया वर्जित किया जाए। राज्य में विकास मॉडल का पुनर्मूल्यांकन जरूरी है। प्रदीप कुकरेती ने सरकार से मांग की हैं कि अब समय आ गया हैं कि शासन स्तर पर इसमें भू-वैज्ञानिक, वानिकी सें जुड़े, सिविल इंजीनियर, ग्लेशियर की समझ रखने वाले वैज्ञानिक , ही मृदा सें जुड़े वैज्ञानिक के साथ कुछ स्थानीय स्तर पर भौगोलिक जानकारी रखने वाले सदस्यों की एक सयुंक्त कमेटी बनाने की सख्त आवश्यकता हैं। वह प्रत्येक 03-माह मेँ अपनी रपट प्रस्तुत करें औऱ उसमें सुझाव भी शामिल हो। जगदीश बावला जी के अनुसार निर्माण गतिविधियों में चालक सड़कों,सुरंग, बांध परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन की प्रक्रिया को कठोर बनाते हुए इसमें पर्यावरण संरक्षण को भी प्रमुखता दी जानी जरूरी है। जनसंवाद गोष्ठी मेँ सुशील त्यागी, रजिस्ट्रार डा॰ एसपी सती, पद्मश्री कल्याण सिंह रावत, पर्यावरणविद जगदीश बाबला, सेवा निवृत वैज्ञानिक डा. डीपी पालीवाल, एमएस रावत, गिरीश चन्द्र भट्ट, अवधेश शर्मा, पीताम्बर जोशी, रवीन्द्र सिंह गुसांई, एसपी नौटियाल, संतोष रावत, डा॰ एसएस खैरा, जयदेव भट्टाचार्य, प्रदीप कुकरेती, जितेन्द्र अन्थवाल, दिनेश भण्डारी, रमेश चन्द्र पाण्डे आदि मुख्य रूप से रहें।

 

 

 

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