एस.के.एम. न्यूज़ सर्विस

देहरादून। “गणेश ऑटो” के नाम से भारत में मुख्य रूप से 1960-70 के दशक की लोकप्रिय बजाज टेम्पो हेनसेट गाड़ी का इतिहास है, जिसे “सूंड वाली गाड़ी” या “कौआ गाड़ी” भी कहते थे, जो जर्मनी की टेम्पो कंपनी और बजाज ऑटो के सहयोग से बनी थी और ग्रामीण व शहरी इलाकों में यात्री परिवहन का प्रमुख साधन थी, जिसमें इंजन स्टार्ट करने के लिए रस्सी खींचनी पड़ती थी। हालांकि, हाल ही में ब्रिटिश कंपनी लेजांते ने भगवान गणेश के लोगो वाली सुपरकार भी लॉन्च की है। यह जर्मनी की टेम्पो वेर्के द्वारा निर्मित ‘हेनसेट’ मॉडल का भारतीय संस्करण था, जिसे भारत में बजाज टेम्पो के नाम से जाना गया। भारत में 1960 के दशक में बजाज ऑटो और टेम्पो ने मिलकर इसका उत्पादन शुरू किया। यह गाड़ी बच्चों को स्कूल ले जाने, यात्रियों को रेलवे स्टेशन तक पहुँचाने और दूरदराज के इलाकों को शहरों से जोड़ने का एक अहम जरिया बन गई थी। इसका इंजन रस्सी से स्टार्ट होता था और यह ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत उपयोगी थी। इस टेम्पो का निर्माण कई सालों पहले बंद हो गया, लेकिन आज भी कई छोटे शहरों में यह दिख जाती है। ब्रिटिश कंपनी लेजांते लिमिटेड ने भगवान गणेश के लोगो वाली एक सुपरकार ’95-59′ लॉन्च की है, जिसे ‘गुडवुड फेस्टिवल ऑफ स्पीड 2025’ में पेश किया गया। इस लोगो का सुझाव बीटल्स के सदस्य जॉर्ज हैरिसन ने दिया था, जो गणेश जी को सौभाग्य का प्रतीक मानते थे और इसी कारण यह लोगो इस लग्जरी कार के लिए चुना गया।  संक्षेप में, “गणेश ऑटो” का संबंध ऐतिहासिक बजाज टेम्पो (सूंड वाली गाड़ी) से है, जो भारत के परिवहन इतिहास का हिस्सा है, और हाल ही में एक ब्रिटिश कंपनी ने गणेश जी के लोगो वाली सुपरकार बनाकर इसे एक आधुनिक संदर्भ दिया है।

कभी यही गनेश ऑटो बाजार से सामान ढोता था, कभी शादी-ब्याह में बर्तन, तो कभी किसी दुकान की पूरी रोज़ी-रोटी। तेज़ रफ्तार की नहीं, भरोसे की सवारी था यह। न एयर-कंडीशन, न चमक-दमक बस इंजन की घरघराहट और डीजल की खुशबू के साथ । शहर की भीड़, साइकिलें, बाइक और दूसरे ऑटो के बीच अपनी जगह बनाता हुआ, यह चुपचाप निकल जाता। इस ऑटो में बैठकर सफ़र करना भी एक अनुभव होता था। लोहे की बॉडी से आती खड़खड़ाहट, हवा में उड़ती धूल और आसपास की चलते वाहनो की आवाज़ें साफ सुनाई पड़ती इसमें कोई कैबिन नही होता यह गाड़ी सिर्फ़ सामान नहीं ढोती थी, बल्कि लोगों के सपने, उनकी उम्मीदें और रोज़मर्रा की ज़िंदगी भी साथ ले जाती थी। जितने लोग अंदर बैठते उतने ही बाहर लटक लेते। आज जब नई-नई गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ रही हैं, तब ऐसे पुराने गनेश ऑटो हमें याद दिलाते हैं कि शहर की असली रफ्तार मशीनों से नहीं, इंसानों की मेहनत से बनती है। ये ऑटो अब भले कम दिखते हों, लेकिन उनकी यादें आज भी शहर की धड़कनों में बसी हैं। 90 के दशक में तीन पहिए पर चलने वाली एक गाड़ी, जिसे हर शहर में अलग नाम दिया गया। किसी ने इसे सूंड वाली गाड़ी कहा तो किसी ने कौआ गाड़ी।

गणेश भगवान के लोगो वाली एक सुपरकार लॉन्च हुई है। यह पहली बार है जब ऐसी कार मार्केट में आई है। इस कार का नाम है 95-59 और इसे ब्रिटेन की ऑटोमोबाइल कंपनी लेजांते लिमिटेड ने बनाया है। इस कार की सिर्फ 59 यूनिट्स ही बनाई जाएंगी। आप सोच रहे होंगे इस कार की क्या खासियते हैं, तो आइए आपको इसके बारे में जानकारी देते हैं। लेजांते 95-59 को इस साल गुडवुड फेस्टिवल ऑफ स्पीड 2025 में लॉन्च किया गया है। कंपनी ने अपनी पहली हाइपरकार लॉन्च कर एक नई शुरुआत की है। यह कार सिर्फ परफॉरमेंस के बारे में नहीं है, बल्कि यह विरासत और डिजाइन का भी हिस्सा है। दिलचस्प बात यह है कि इस पर भगवान गणेश का लोगो लगा है, जो कि अब किसी और हाइपरकार तो क्या साधारण कार पर भी नहीं था। कारों की दुनिया में यह अनोखा है। लेजांते कंपनी रेसिंग कारों को सड़क पर चलाने लायक बनाने और उन्हें फिर से तैयार करने के लिए जानी जाती है। 95-59 कार इस कंपनी की विशेषज्ञता को दर्शाती है। इस हाइपरकार को पॉल हाऊस ने डिजाइन किया है, जो मैकलारेन पी1 के स्टाइलिस्ट थे। इस कार में तीन सीटें हैं और ड्राइवर बीच में बैठता है। इसमें 850 hp का ट्विन-टर्बो वी8 इंजन लगा है और इसकी बॉडी हल्के कार्बन-फाइबर से बनी है। 95-59 कार को इस तरह से बनाया गया है कि यह हवा को काट सके। कहा जाता है कि इसका बीच में लगा एग्जॉस्ट एफ-22 लड़ाकू विमान से प्रेरित है। इसमें कांच की छत है, जिससे अंदर रोशनी आती है। कार के अंदर के स्विच छत पर लगे हैं, जैसे किसी जेट प्लेन में लगे होते हैं। 95-59 हाइपरकार की सिर्फ 59 यूनिट्स ही बनाई जाएंगी, जिसका मतलब है कि यह कार सिर्फ कुछ चुनिंदा लोग ही खरीद पाएंगे। हर कार पर गणेश जी का लोगो होगा, जो ज्ञान, समृद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है। कार की शुरुआती कीमत लगभग 1.38 मिलियन (करीब 12 करोड़ रुपये) होगी।

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